Tuesday, November 4, 2008

नई राह पर

राहत अभियान के खत्म होने का यह कतई अर्थ नहीं है कि हमारा अभियान खत्म हो गया। हमने इस आपदा के बाद इस इलाके का रूख सिर्फ राहत बांटने के लिए नहीं किया था। हमारा लक्ष्य था कि हम कोसी नदी की उस समस्या को समझे जिसके कारण दो सौ किमी की चौडाई में फैला एक बडा समाज सदियों से पीडित और उपेक्षित रहा है। इसी कडी में हमने एक नई राह चुनी है। वह है इस बार के सभी बाढ पीडित गांवों की यात्रा का अभियान। हमारी यह यात्रा वराह क्षेत्र से षुरू होगी, जहां से कोसी की सात धाराएं मिलकर एक होती है और अपने मैदानी भाग की यात्रा षुरू करती है। हम अपनी यात्रा कार्तिक पूणिZमा के दिन षुरू करना चाहते हैं, जिस दिन वहां भव्य मेला लगता है और पूरे इलाके के लोग पहुंचते हैं। वहां से षुरू होकर हमारी यात्रा कोसी की नई धारा से सटे सुपौल, मधेपुरा, खगडिया, भागलपुर से होते हुए कटिहार जिले के कुरसेला नामक स्थान तक पहुंचेगी, जहां कोसी नदी गंगा से मिलती है। फिर वहां से कोसी के दूसरे किनारे पर कटिहार, मधेपुरा और अररिया जिले के प्रभावित गांवों से गुजरते हुए नेपाल की सीमा तक जाएंगे। यात्रा के दूसरे चरण में हम तटबंध के भीतर के गांवों में जाएंगे, जहां इससे पहले कोसी नदी बहा करती थी। यात्रा के दौरान हमने करीब 100 प्रभावित पंचायतों में एक-एक रात गुजराने का फैसला किया है। इस तरह हमारी यह यात्रा सौ दिनों की होगी, जो लगातार न होकर अलग-अलग चरणों में समाप्त होगी। इस यात्रा का लक्ष्य आपदा के दौरान हुई जानमाल की क्षति का आकलन, आपदा और पिछले ढाई माह में चले सरकारी और गैरसरकारी राहत कार्य का दस्तावेजीकरण, इस घटना के बाद लोगों के जीवन में आए भौगोलिक, सामजिक और आर्थिक बदलाव का पता लगाना, कोसी समस्या के समाधान को लेकर लोगों की सोच का जायजा लेना और केंद्र सरकार की सीआरएफ नीतियों का प्रचार-प्रसार करना ताकि लोगों को उनका उचित मुआवजा मिल सके।

1 Comment:

Anonymous said...

पुष्य और रूपेश... आप दोनों को आपके इस कार्य के लिए शुभकामनाएं... आप अपने मकसद में कामयाब हों... यूं तो आप खुद भी डॉक्यूमेंटेशन में माहिर हैं फिर भी यदि हर गांव के फोटोग्राफ्स भी साथ-साथ लेते चलें तो अच्छा होगा... और यदि संभव हो तो कुछ वीडियो फुटेज भी एकत्र करतें चलें...
आर्थिक सीमाएं हैं... आप दोनों के साथ... अफसोस कि मैं निजी तौर पर फिलहाल कोई मदद नहीं कर पाया हूं... इसलिए कई बार बातचीत करते हुए भी संकोच होता है... आप दोनों ने वाकई हिम्मत का काम किया है... और एक मिसाल पेश की है... रूपेश भाई और आप, दोनों अपने इस मिशन पर लगे रहें... आने वाले दिनों में व्यक्तिगत तौर पर मुझसे जो आर्थिक सहायता बन पड़ेगी मैं करूंगा... ये सहायता नितांत आपके निजी खर्चों के लिए होगी... यात्रा के दौरान जो भी आपके निजी खर्च होंगे कृपया इस राशि का इस्तेमाल करें... मैं ज्यादा तो नहीं लेकिन 2000 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से आपके सौ दिनों के लिए 6000 रुपये का इंतजाम करने की कोशिश करूंगा। देर सवेर ये राशि आप तक पहुंच जाएगी... बाकी आप दोनों और आपके साथियों को एक बार पुन: साधुवाद...
पशुपति

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