इस बात को चार महीने हो गये. अ।र्थिक मंदी और मुंबई पर हुए हमले ने सब कुछ भुला दिया. कोसी के कहर के मारे लाखों लोगों के अ।ंसूं, उनकी अ।ंखों में ही ठहरे हैं. अब उनकी सिसकियों को सुनने वाला कोई नहीं. हमने अपने अभियान की शुरुअ।त मधेपुरा से करीब 12 किमी दूर शंकरपुर ब्लाक के सोनवषार् पंचायत से की.इन चार महीनों में भले ही दुनिया में बहुत कुछ बदल गया हो, यहां के लोगों का ददर् वही है. वे अपने घरों को तो लौट अ।ये हैं, लेकिन उनकी जिंदगी नहीं बदली. उनके खेत खलिहानों में अब भी एक से ढाई फीट तक पानी जमा है. गांव की सडकें व घरों पर से तो पानी निकल गया है, लेकिन एक मुक्कमल जिंदगी जीने के लिए यह काफी नहीं. जहां तक नजरें जाती हैं, अब भी पानी ही दिखता है. खेतों में पानी जमा होने के कारण धान की फसल हुई नहीं, अगले कई माह तक किसी तरह की पैदावार हो सके, एेसा मुमिकन नहीं दिखता. बाढ के समय जो सरकारी सहायता मिली, दाना दाना गिनकर खचर् करने के बावजूद अब खाने के लाले हैं. सरकारी राहत के तौर पर गांव में हर परिवार को एक िक्वंटल चावल और 2250 रुपये नगद दिये गये थे. यह सहायता कम से कम तीन माह तक दी जानी थी, लेकिन एक बार जाने के बाद सरकारी हुक्मरानों ने दुबारा इस गांव का रुख नहीं किया. इस पंचायत के सात लोगों ने बाढ में अपनी जान गंवायी. प्रशासन ने उनके पिरवारों को एक एक लाख के मुआवजे की घोषणा तो कर दी, पर मिला सिफर् एक को. इस पंचायत के लोग थोडे से इस मामले में भाग्यशाली रहे कि कोसी तटबंध के टूटने के आठ दिनों बाद यहां पानी घुसा. इस बीच लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने का मौका मिल गया. अपनी जिंदगी भर की गाढी कमाई को भगवान भरोसे छोड यहां के लोगों ने लालपुर हाइस्कूल में शरण ली. पानी बढा तो इन्हें सिंहेश्वर, लालपुर, हरदी, सहरसा के राहत कैंपों की ओर रुख करना पडा. करीब महीने भर बाद ये अपने घर लौटे और तब शुरू हुई फिर से जिंदगी शुरू करने की जद्दोजहद. वल्डर् विजन, राम कृष्ण मिशन, एपी कोडर् ने रिलीफ बांटी. लालपुर, सरोपट्टी, सिंहेश्वर अ।दि गांव के लोंगों ने यहां अ।कर राहत साम्रगी भी बांटी.पर इतना काफी नहीं है. इतनी बडी प्रभावित अ।ब।दी के लिए एक सक्षम मसीनरी का होना जरूरी है. वह सरकार के पास है. पर उसका उपयोग वह कर नहीं पा रही और बाढ पीडितों को उनके हाल पर छोड दिया गया
साइबेरियन पक्षियों ने किया रुख
एक विशाल भूभाग में पानी भर जाने से किसी और को फायदा हुअ। हो या नहीं, साइबेरियन पक्षियों को एक और शरणस्थली मिल गयी है. जो गिद्ध इस इलाके से विलुप्त हो चले थे, अब फिर से दिखने लगे हैं.
Wednesday, December 17, 2008
घर मिला, पर जिंदगी नहीं
Posted by बिहार कोसी बाढ़् at 12/17/2008
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4 Comments:
ओह बहुत दुखद -काश सरकारी मशीनरी इतनी असंवेदनशील और नकारा न होती !
अरविन्द जी की बात से पूर्णतया सहमत हूं। सरकारी तंत्र के सहारे तो उद्धार होने से रहा। स्वयंसेवी संस्थाऒं को ही आगे आना पडेगा। विवरण अच्छा है पर मात्रागत अशुद्धियां बहुत है उन्हें कम करने का प्रयास करिये। अथवा इसे काम में लीजिये मदद मिलेगी।http://uninagari.kaulonline.com/default/
बहुत ही अच्छा प्रयास है आप सभी का. आप वो स्थिति बयाँ कर रहे हैं जिस पर शायद कभी कोई ध्यान नही देता.
आपकी पूरी टीम को तीसरे कदम का सलाम.
शायद यही तीसरा कदम है जो आप उठा रहे हैं......
जय जवान.
नज़र बनी रहेगी आपके ब्लॉर पर...
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