Friday, December 19, 2008

सौ साल के गंगोइ की बहादुरी

हिरोलवा गांव में हमारी मुलाकात सौ साल की उम्र पार कर चुके गंगोइ यादव से हुई. इनकी हड्डियां जरूर बूढी हो गयी हों पर हौसला नहीं. वे बताते हैं कि इस बार जब बाढ आयी, तो सभी दूसरी सुरक्षित जगहों पर चले गये. गांव में केवल 10 से 15 लोग रह गये. मैं भी रुक गया. बाढ से मुझे बिल्कुल डर नहीं लगा. वह बताते हैं कि वे अपनी जिंदगी में पहले भी इस तरह की बाढ देख चुके हैं, इसलिए यह बाढ उनके लिए एक सामान्य घटना की तरह ही थी. उन्होंने बताया कि कोसी पहले इसी ओर से बहा करती थी, उस समय 1934 के आसपास भयंकर बाढ आयी. उस समय नदी में घडियाल हुआ करता था, इसलिए डर अधिक लगता था. अब तो उसका भी डर नहीं है. मैंने गांव में रुककर सबके सामानों की देखभाल की. जिसके कारण आज लोग मेरे काम भी आ रहे हैं.

आंखों के सामने मर रहे हैं जानवर

हमने अपनी अगली यात्रा शंकरपुर ब्लाक के चिरुआ मधेली पंचायत से शुरू की. जगह बदलती जाती पर तसवीर वही रहती.इस पंचायत के हीरोलवा गांव में अभी तक जिंदगी पटरी पर नहीं आयी है. खेतों में ढाई से तीन फीट तक पानी अब भी भरा है. सबसे अधिक दुश्वारियां जानवरों के लिए है. ग्रामीण इलाकों के लिए पशुधन से बडा कुछ भी नहीं। आज वही धन यहां के लोंगों के हाथ से फिसलता जा रहा है. अकेले हीरोलवा गांव में 600 से 700 बकरियां मर चुकी हैं. गाय भैंस भी लगातार दम तोड रहे हैं. बाढ से सबसे अधिक नुकसान जानवरों को हुआ. बाढ के पानी में हजारों जानवर ग्रामीण और इंसान मर गये. उनके मरने से वह पानी विषैला हो गया. जो जानवर बचे, उन्हें वही पानी पीने को मजबूर होना पडा. विषैला पानी पीने से जानवर लगातार मरते रहे और ग्रामीण बेबस आंखों से उन्हें मरते हुए देखते रहे. उनके पास इसके सिवाय कुछ और रास्ता नहीं है. जो खुद अपनी प्यास बुझाने के लिए संघषर् कर रहे हों, वह अपने जानवरों के लिए पीने के पानी का इंतजाम कहां से करें। हिरोलवा के मात्र 10 से 15 फीसदी परिवारों के पास ही पिछले साल का अनाज बचा है. बाकी 80 फीसदी परिवारों को एक जून की रोटी के भी लाले हैं.
हीरोलवा से आगे बढने पर मधेली साइफन मिलता है. यहां नीचे से नदी ओर पुल से नहर गुजरती है. कोसी ने जब उफान मारा तो साइफन टूट गया. नहर और नदी एक हो गयी. जहां सूखा था, वहां 15 से 16 फुट पानी आ गया और तेज धारा बहने लगी. मोजमा में दो जगह नहर और एक जगह साइफन टूट गया. जिरवा नदी जो मौसमी नदी बन गयी थी, अब भरपूर नदी बन चुकी थी, इसकी धारा इतनी तेज हो चुकी थी, कि गांव के गांव इसमें समाते चले गये. मोजमा पंचायत में भी पानी भर गया. अब यहां से पानी उतर गया है. लेकिन अपने पीछे जानवरों की हड्डियों का ढेर छोड गया. इनमें सबसे ज्यादा बकरियां हैं।
रायफल ढूंढने के एक हजार
इस बीच, एक वाकिया हुआ जो ग्रामीण कभी नहीं भुलते. मौजमा हिरोलवा के बीच जो नहर टूटी थी, उसमें बीडीओ और सिपाहियों की नाव पलट गयी. सिपाही तो किसी तरह बाहर आ गये, लेकिन उनकी रायफल डूब गयी. वहीं घोषणा की गयी कि रायफल ढूंढने पर ग्रामीणों को एक हजार रुपये इनाम मिलेगा. ग्रामीणों ने काफी मशक्कत के बाद रायफल तो ढूंढ दी, लेकिन इनाम अभी तक नहीं.

Wednesday, December 17, 2008

घर मिला, पर जिंदगी नहीं

इस बात को चार महीने हो गये. अ।र्थिक मंदी और मुंबई पर हुए हमले ने सब कुछ भुला दिया. कोसी के कहर के मारे लाखों लोगों के अ।ंसूं, उनकी अ।ंखों में ही ठहरे हैं. अब उनकी सिसकियों को सुनने वाला कोई नहीं. हमने अपने अभियान की शुरुअ।त मधेपुरा से करीब 12 किमी दूर शंकरपुर ब्लाक के सोनवषार् पंचायत से की.इन चार महीनों में भले ही दुनिया में बहुत कुछ बदल गया हो, यहां के लोगों का ददर् वही है. वे अपने घरों को तो लौट अ।ये हैं, लेकिन उनकी जिंदगी नहीं बदली. उनके खेत खलिहानों में अब भी एक से ढाई फीट तक पानी जमा है. गांव की सडकें व घरों पर से तो पानी निकल गया है, लेकिन एक मुक्कमल जिंदगी जीने के लिए यह काफी नहीं. जहां तक नजरें जाती हैं, अब भी पानी ही दिखता है. खेतों में पानी जमा होने के कारण धान की फसल हुई नहीं, अगले कई माह तक किसी तरह की पैदावार हो सके, एेसा मुमिकन नहीं दिखता. बाढ के समय जो सरकारी सहायता मिली, दाना दाना गिनकर खचर् करने के बावजूद अब खाने के लाले हैं. सरकारी राहत के तौर पर गांव में हर परिवार को एक िक्वंटल चावल और 2250 रुपये नगद दिये गये थे. यह सहायता कम से कम तीन माह तक दी जानी थी, लेकिन एक बार जाने के बाद सरकारी हुक्मरानों ने दुबारा इस गांव का रुख नहीं किया. इस पंचायत के सात लोगों ने बाढ में अपनी जान गंवायी. प्रशासन ने उनके पिरवारों को एक एक लाख के मुआवजे की घोषणा तो कर दी, पर मिला सिफर् एक को. इस पंचायत के लोग थोडे से इस मामले में भाग्यशाली रहे कि कोसी तटबंध के टूटने के आठ दिनों बाद यहां पानी घुसा. इस बीच लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने का मौका मिल गया. अपनी जिंदगी भर की गाढी कमाई को भगवान भरोसे छोड यहां के लोगों ने लालपुर हाइस्कूल में शरण ली. पानी बढा तो इन्हें सिंहेश्वर, लालपुर, हरदी, सहरसा के राहत कैंपों की ओर रुख करना पडा. करीब महीने भर बाद ये अपने घर लौटे और तब शुरू हुई फिर से जिंदगी शुरू करने की जद्दोजहद. वल्डर् विजन, राम कृष्ण मिशन, एपी कोडर् ने रिलीफ बांटी. लालपुर, सरोपट्टी, सिंहेश्वर अ।दि गांव के लोंगों ने यहां अ।कर राहत साम्रगी भी बांटी.पर इतना काफी नहीं है. इतनी बडी प्रभावित अ।ब।दी के लिए एक सक्षम मसीनरी का होना जरूरी है. वह सरकार के पास है. पर उसका उपयोग वह कर नहीं पा रही और बाढ पीडितों को उनके हाल पर छोड दिया गया

साइबेरियन पक्षियों ने किया रुख
एक विशाल भूभाग में पानी भर जाने से किसी और को फायदा हुअ। हो या नहीं, साइबेरियन पक्षियों को एक और शरणस्थली मिल गयी है. जो गिद्ध इस इलाके से विलुप्त हो चले थे, अब फिर से दिखने लगे हैं.

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hamara kaam

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