Monday, September 8, 2008

जिसने छीना है कइयों का ठौर

मोहित कुमार पांडेय भोपाल में पत्रकारिता की पढाई कर रहे हैं. बिहार में बाढ की खबरें पढते, सुनते और देखते हुए वे बेचैन हैं. उन्होंने बाढ को करीब से देखा है और पानी होते जीवन में कई बार मौत से आंखें मिलाई हैं. उनका दर्द इस कविता में जाहिर होता है.


सुना था जल ही जीवन है,
पर बिहार में जल ही जल था,
जीवन के लिए त्राहि-त्राहि थी।
एक छत पर लेटा आदमी सपना देख रहा था,
कि उसके जीवन में खुशियों की बाढ़ आ गई।
परन्तु कोसी की बाढ़ ने आज उसकी आड़ तक ले ली।
अब उसके घर में बची है, उसकी बच्ची अकेली।
बच्ची पांच साल की है, वह तो पानी से खेलती थी।
परन्तु वह क्या जाने , कि इस पानी ने क्या खेला।
इस पानी की खातिर उसके परिवार और बिहार ने क्या झेला।
उसकी जुबां पर तो सिर्फ मां-मां है।
पर ये तो किसी को नहीं पता, कि पानी के इस भीषण बहाव में, उसकी मां कहां है।
लो अब बचाव वाले खाना ले आये।
खाने के लिए भगदड़ मची,
और बेचारी बच्ची उसमें फंसी।
कहीं से एक दाना पाकर, वह खाने के लिए ढूंढ रही है मां के हाथों को ।
पर जैसे ही पानी में हाथ डालती है,
वह पाती है बड़े-बड़े सांपों को ।
हे पानी ये तू है या कोई और,
जिसने छीना है कइयों का ठौर।
अब क्या बचा, एक बूढ़ी मां चिल्ला रही है।
अब तो उसकी प्यारी गाय भी, पानी में बहती जा रही है।
बड़े-बड़े जहाज ऊपर से मंडराते हैं।
बड़े-बड़े नेता टीवी पर लोगों को समझाते हैं।
पर क्या किसी ने इन लोगों के दिल को टटोला?
क्या बहा, क्या रहा, क्या होगा, इसको राजनीति से हटकर तोला।
ऐ मेरे दोस्तों क्या तुम भी, संवेदना से शून्य हो चुके हो ?
बहुत कुछ न खोते हुए भी, तुम बिहार के हजारों बंधु-बांधव खो चुके हो।
अब खोलो आंखें, बढ़ाओ हाथ।
दो उनका साथ, जो हो गये अनाथ।
जिन्होंने खोया है,बाढ़ में सब कुछ।
दिल में लगा है, आघात जिनके सचमुच।
ये अपनी हैं मांएं, ये अपने हैं भाई।
हैं कुछ कारण, जिससे इन पर ये स्थिति बन आई।
अब तो न तूम मूक दर्शक बनो,
भीतर से कुछ आवाजें सुनो।

6 Comments:

parikshit said...

mohit ji ki bhavnayen achhi hai agar app mere vichar baadh ke vishay me janana chahte hai to plz mujhe pardekepiche.blogspot.com par padhen

Anonymous said...

Acchha prayas hai. Keep it up.

Anonymous said...

a very serious & thought provocative effort by you.
keep it up, with lots of best wishes.

Sharad C Tripathi said...

shabd rachna me nahi bhandhe badhe is haal me, der tak rote rahe ham kal ki is chal pe.shok santapt
-sharad chandra tripathi

mani bhushan said...

ab kya banki hai?????????????

mani bhushan said...

ab kya banki hai?????????????sahityik bat karne se achha hai madad ke lie aage badhe.......ab sochna band aur madad suru plzzzzzzz

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