विनय तरुण भागलपुर में हैं. बाढ राहत शिविरों में. मदद के लिए उठे आपके हाथों ने उन्हें हौसला दिया और वहां सभी साथी दोगुने उत्साह से हांफती सांसों को थामने में लग गए हैं. उन्होंने हालिया तस्वीर को अपनी चिट्ठी में बताया है. वे बताते हैं कि हालात अभी बदतर हैं और अभी और भी बिगडेंगे. जितना किया जा रहा है वह नाकाफी है. दरकार और हासिल के बीच लंबा फासला है. सुबह उठते लोग टकटकी लगाए आसमान की ओर देखते हैं. पूरी चिट्ठी पढने के लिए नीचे यहां क्लिक करें.
Monday, September 8, 2008
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2 Comments:
bahut badia kadam uthaya hai aapne...iske liye aapko badai...apne unka dard batne ki koshish ki hai jo vakai is samay dukh me aur dayniy halat me hai
ab sahityik bate band kare aur madad k lie aage aaen.........
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